गुरुवार, 28 जुलाई 2011

उफ़ वो आँखे...






उफ़ वो आँखें रोती -रोती
यूँ  ही जीवन खोती-खोती



                  उन आँखों से उन गालो पर
                  बन कर बहते मोती -मोती 




अपने  घर में वो इक लड़की
डरती है क्यूँ सोती -सोती


                
                   उमर भर रोती रही वो
                  अब हंसी तो रोती-रोती




होती नहीं नुमायाँ  चाहत  
हों जायेगी होती -होती



     ......वन्दना.....

शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

माँ....


माँ....
मेरे उर में जागी है
इक व्यथा...
माँ, तुम जैसी
ही है मेरी
भी कथा......
माँ.....
तुमने सब दिया...
जन्म...
और सुख के सभी
आधार....
पर पुत्री को क्यूँ
न दिया सेवा
का अधिकार......
माँ.....
तुमने ही सिखाया प्रतिपल...
जल जल ...
दिव्य जीवन....
और उससे
साक्षात्कार....
माँ ......
तुम महा सिन्धु....
मैं तो मात्र एक
बिंदु....
पाया तुमसे ही आकार....
पंचतत्व आधार,
पर देह तो तुम्ही से
पायी माँ.....
समर्पित तुम्हे....
मेरे शब्दों की संवेदना.....
उऋण न हो सकेगी,
कभी....माँ....
तुम्हारी वन्दना.....

....वन्दना ....

निंदा और आवेश...

निंदा और आवेश भरे स्वर....

हो जाते हैं जब मुखर....

कैसे जगाएंगे समुदाय....

और कैसे दूर करें,

.......अन्याय.....

परिपक्व हो यदि विचार...

फिर रौशन होगा जग संसार...

फिर रौशन होगा जग संसार...
...वन्दना....

प्रीत...

प्रीत भाव हिय अर्जित |


परम प्रीत पिय अर्पित ||






निश्छल सरल भाव समर्पित |


कल्मष तृष्णा भाव तिरोहित ||

.....वन्दना.....

बोल....

कुछ बोल जुबाँ से निकले  
कुछ निगाहे जुबाँ से पिघले...

रिश्ते नाते तमगे बन गए 
उम्मीदों के भी दम निकले 

इक तान सुन के मैं बह गई 
वो सुर में सुर मिला के बदले...
....वंदना...

चेतना...

जब उर उपजी संवेदना
चित चेतन मन की चेतना

निरर्थक व्यथा और वेदना
निस्सीम निशित साधना...
...वन्दना....





साधक साधना

प्रेरक सीढियां

गति सद्गति

निःशब्द सीढियां

भाव अभाव

समभाव सीढियां...

.....वन्दना....


मतलूब बदले तो बदले...
बाखुदा तलब कभी न बदले...

इब्तेदा में ही मर गए सब...
इन्तेहा-ऐ-इश्क कौन बदले...

जन्नत की तमन्ना में तिजारत...
तमन्ना-ऐ-जन्नत में सजदे निकले...

इबादत भी बुजदिलाना खिदमत...
जहीनो ने भूखों के निवाले निगले...

.....वन्दना...