मंगलवार, 16 अगस्त 2011

प्रीत....



कष्ट में सुख में सदा,
उर बसी रहे प्रीत....
प्रीत से ज्योतित ह्रदय,
गाए नए नित गीत...
...वन्दना...
जागीर ना समझा मह्बूब कभी
बड़े सलीके से निभाते रहे....
उनके करम के सदके रहे
अपना भरम आजमाते रहे...
...वन्दना...

क्रोध...

अक्षण सदैव ही क्रोध भाव...
कब दूर हुआ मन का अभाव????

हिंसा,विध्वंस सब मन के विकार..
कब न्याय ने बदला आचार व्यवहार?????
...वन्दना...

बदगुमानी...

बदगुमानी में जिया तो जी भी लिया..
शौक-ऐ-यकीं के शरारों से जला जिया...

तल्खी-ऐ-जीस्त से बिगड़ा मिजाज़े आशिकी...
अक्स-ऐ-गम-ऐ-यार ने ग़मगीन किया...
....वन्दना....

बुधवार, 10 अगस्त 2011

'इच्छा -शक्ति'

संभवतया
इच्छा और शक्ति के मध्य का
यह संघर्ष-
मन और मस्तिष्क का संघर्ष
बन गया है,
'इच्छा -शक्ति'
है अथवा नहीं ?
मानो दोनों ही अलग - अलग
पलडो पर हैं-
अतुलनीय...
संघर्षरत,
मात्र मेरे निर्णय को अपने-अपने
पक्ष में करने के लिए कि-
दृढ़ता किसमे ज्यादा है?
मन-
अधिकांशतः ही झुकता आया है/कमजोर पड़ता है
दबावों के आगे
परन्तु, मस्तिष्क-
कठोर हो संवेदनाए नष्ट कर देता है
इच्छाओं और आवश्यकताओं की  भी
'कोई' नहीं जान पायेगा....
और मन चाहने लगता है
नहीं ! खुद को आजमाना है
मस्तिष्क आदेश देता है
और,
मेरी मजबूती फिर से बढ़ जाती है
अंतर्द्वंद / संघर्ष
भी बढ़ जाता है
और मन का मौन कही दब जाता है
शब्द मुखर हो जाते है
किन्तु ,
मोल उन शब्दों का नहीं
जो प्रभावित करने की आकांक्षा में
निकले थे
शब्दों का जाल तो प्रपंच भी हो सकता है
मोल तो स्वयं की निष्ठा...
स्वयं की आस्थाओं का है
मुझे अब खुद को तोलना होगा
और
जानना होगा
क्या मैं--
जीत पाउंगी?
या फिर मात्र
अनावश्यक प्रपंच ही रच सकती हूँ...

---वन्दना....

रविवार, 7 अगस्त 2011

पीड़ा में सब जीवन निहित

राग मृदुल क्रंदन में स्मित 


लय  छंदों में ढाल दिए सब 


दृग जल हैं गीतों से सुरभित 

...वन्दना....
कर लें अब यह चिंतन मन में...

प्रखर प्रभाव भरें जन-जन में...

शान्ति दीप जलें जीवन में...

करुणा धार रहे न मन में....
...वंदना...


निद्रा विहीन लोचन...

अपरिचित स्वर्ण-स्वप्न...

करूण अभाव प्रतिक्षण...

तृप्ति...मूक शब्द संवेदन...
...वन्दना....