सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

सप्तपदी



मैं अपना पता जानती नहीं...
धरा से विमुख...
आसमां में भी जगह नहीं...

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तुम किसी रंग में रंग गए...
खुशबु बन घुल मिल गए...
मैं...
सुखन में भी ढली नहीं...

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एक दिन तुम भी बदलोगे...
वक़्त किसी पर मेहरबां नहीं...
तुम्हारे ही कदम डगमगाए हैं...
सप्तपदी मैंने छली नहीं...

...वन्दना...

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

राह और आदमी....



वो एक अकेली राह पर जाता आदमी;
अपने मन में छुपाये....
अनगिनत तूफ़ान...
मन के भीतर ही दबाये.
जीवन का उफान
कि; अभी तक वह 
संघर्षरत है ,
अपने जीवन के सुखों के लिए...
कदाचित इसीलिए निकल पड़ा है 
इस राह पर....
तलाशने कुछ नया सा...
किन्तु भागते - दौड़ते...
वह प्रारम्भिक उत्साह 
कहीं दब सा गया है,
उस तूफानी चाल में शिथिलता कैसी?
मन के अवसाद में कडुवाहट क्यों?
कदाचित , राह में ठोकर लग गयी है,
और... मन के संघर्ष 
राहों कि ठोकर खा - खा कर
बोझिल हो चले हैं,
और फिर....
वो एक अकेली राह पर लौटता आदमी ;
अपने मन में छुपाये....
अनगिनत विषाद...
जीवन का अवसाद....

...वन्दना...


रविवार, 5 फ़रवरी 2012

स्वप्न...


स्वप्न होंगे सत्य सारे.
 ह्रदय में यह ध्येय निष्ठा...
 जलती ज्वाला का कण-कण,
 दे मन को नव प्राण प्रतिष्ठा...
....वन्दना....
दिल के रिश्ते हैं नाजुकी का क्या कहना...
नर्मो नाजुक ख्याल भी रुला देते हैं...वन्दना...

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012