शुक्रवार, 29 जून 2012



इबारत दर्द की लेकर इक आस सजाये हैं
चाहत के दरीचे मे पैबंद सजाये हैं

बस जर्फ के दम पे खामोश हूँ अब तक
अहबाब तो दास्तान ए महफिल सजाये हैं 

तस्कीन हो हासिल उस तन्हा दिल को यारब
चश्म ए नम छुपा कर ये लब मुस्कुराए हैं

बड़ी शिद्दत से रातो को जाग जाग कर
उस चाँद के पहलू मे सितारे सजाये हैं

...वन्दना...

बुधवार, 6 जून 2012

तिश्नगी से जो इज्तिराब है,
जायका.ऐ.अश्क लाजवाब है!!!


इक यादे अय्यामे गुजिश्ता के मतलूब,
कमबख्त तलब से तबाह जोशे ख्वाब है...
.....वन्दना.....