शुक्रवार, 24 मई 2013

मेरा वजूद दर्दे-ताब






न खार  न गुलाब 
मेरा वजूद दर्दे-ताब

फिर वही शामे मलाल
फिर खुली दिल की किताब

जो बढ़ने लगी तश्नगी
पाया लुत्फ ए चश्मे आब

चश्म ऐ पुरनम से देखो 
टपकने लगे रेज़ा ख्वाब 

जब की सुकूँ की तलाश 
दिया आईने ने जवाब

जो रूह मे बोये थे कभी    
सुखन मे ढूंढ़े वो ख्वाब