गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

आत्मा में बसे आराध्य को....










मन के भीतर मंदिर शिव का

मैं क्या मंदिर जाऊँगी 



आर्द्र नयन से सींचा प्रतिपल 


मैं क्या जल चढ़ाऊँगी 



वेद विधान की देव - वन्दना 

अज्ञानी मैं हूँ अकिंचना 

मिला न कोई बिल्ब धतूरा

हृदय कलिका चढ़ाऊँगी 



अंध तमस में जीवन सारा 

भस्म करो हे देव मलिनता

श्रद्धा और भक्ति की शक्ति 

रोम रोम में बसाऊँगी 



बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

सांझ ढले.....








सांझ ढले जब पंछी चहके , दहका सूरज भी कुम्हलाया  
विस्मृति की खिड़की से गुपचुप ,यादों का बादल घिर आया 

पाषाण हृदय के कारा में , हो तृषित जरा जो मन घबराया 
मूक अभागी तृष्णा पथराई , रेतीला दरिया बह आया 

स्वप्न शेष पर निंदिया रूठी ,कोरों में खारा जल आया  
न चेहरा दिखता न हीं सपन , दरपन दरपन भी धुन्धलाया  

बुधवार, 5 फ़रवरी 2014

अहले नज़र यूँ रब को बना लो



अहले नज़र यूँ रब को बना लो 
गमगीं दिल के ग़म अपना लो 

चश्म ए पुरनम छलकी जाए 
तश्ना लब थे प्यास बुझा लो 

जब अहसास भी सर्द लगें तो 
एक सुलगता ख्वाब जला लो 

दुनिया के रंजो गम बेज़ा 
हँसते गाते फुरसत पालो

ज़ुल्मो दहशत फैलाने वालों    
बेहतर इश्क का शिकवा गिला लो 

आँखों की बरसात थमे तो    
दीप 'दुआ' का एक  जला लो





अहले नज़र  = कद्रदान 
चश्म ऐ पुरनम  = आसुंओ से भरी हुई आँखें 
तश्ना लब = होठों की प्यास