मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

मृत्यु...एक भीषण यातना पूर्ण दुस्वप्न ही क्यूँ ?







मृत्यु...एक भीषण यातना पूर्ण दुस्वप्न ही क्यूँ ?



भारत में पुनर्जन्म की परिकल्पना के चलते निर्वाण जैसी अवधारणा मात्र दर्शन तक ही क्यूँ सीमित है ? शांति एवं गरिमा के साथ एक अनुकूल समय विशेष पर स्वेच्छिक मृत्यु का मूल अथवा विशेषाधिकार न होना कहीं दुर्भाग्यपूर्ण तो नहीं? मानवीय जीवन के संरक्षण के पीछे मूलभूत कारण क्या हैं?  

यदि भारतीय दर्शन को ध्यान में रखकर सोचा जाय तो यह कहीं से भी अनुचित नहीं प्रतीत होता क्योंकि गीता में जहां एक ओर यह कहा गया है की मृत्यु के लिए शोक व्यर्थ है क्योंकि दुबारा जन्म अवश्यम्भावी है वहीँ बौद्ध तथा जैन धर्म में यह स्पष्ट रूप से माना  जाता है की जीव अनेक बार जन्म लेता है जबतक वह निर्वाण / मोक्ष नहीं प्राप्त कर लेता या दूसरे शब्दों में जीवन मृत्यु के बंधन से मुक्त नहीं हो जाता । हालांकि निर्वाण शब्द बहुत विस्तृत है और जिस पर अनेक विचार प्रस्तुत किये जा सकते हैं , किन्तु यहाँ मुद्दा इच्छा मृत्यु है , जो कहीं न कहीं विसंगतियों से भरे जीवन जीने को विवश व्यक्ति का अधिकार होना चाहिए। 

यह भी एक तथ्य है की जीवन का आदि या अंत मानवीय बूते से बाहर का विषय है यह तो ईश्वराधीन क्रिया कलाप हैं , किन्तु कानूनन यदि इस तरह की व्यवस्था की जा सके तो इसमें क्या बुराई  हो सकती है   सिवाय इसके की इस अधिकार का दुरुपयोग होने की संभावनाएं बढ़ जायेंगी . 

आध्यात्मिक रूप से पूर्ण एवं सिद्ध मनुष्य/योगी  भी सांसारिक जीवन से 
विलग ही समय व्यतीत करते हैं और अक्सर अपनी देह का त्याग स्वेच्छा से कर सकते हैं  

मृत्यु को प्रतीक्षारत वो वृद्ध जिनकी आवश्यकता उनकी संतान तक को नहीं ,या वो मनुष्य जो किसी असाध्य बीमारी के कष्ट से पीड़ित हैं , जिनका भरण पोषण भी सहज नहीं अपितु कष्ट सहन करने के लिए विवश हैं क्या उन्हें इच्छा मृत्यु का विकल्प देने पर सुखद अनुभूति का अनुभव नहीं कराया जा सकता ?

कानूनी प्रकिया निसंदेह जटिल होगी अपितु होनी असम्भव सी ही है किन्तु क्या इस ओर विचार भी नहीं किया जा सकता ?

मानवीय अविश्वसनीयता और बौद्धिक जिज्ञासा कभी कभी ऐसे छोर पर ले जा कर छोड़ देती है जहां हम निरे अनुत्तरित रह जाते हैं। यह  संभवतः ऐसी ही समस्या है जिसे अक्सर छह कर नकार दिया जाता है।


7 टिप्‍पणियां:

  1. aapka lekh khin na kahin aatma ko jhakjhorta hua hai... jo prashn aapne uthaye hain wo steek hi nahin , vicharneey bhi hain
    pragati sheel maanv ki soch ko prkhar karta lekh badhayi aapko

    जवाब देंहटाएं
  2. आपसे सहमत होने का मन करता है, पर सवाल भी कई आते हैं. स्वैच्छिक मृत्यू कई देशों में मान्य है. परन्तु हमारे देश में बेहतरीन दर्शन होने के वावजूद उसके दुरूपयोग की संभावनाएं बहुत हैं. मैं कुछ ऐसी प्रथाओं के बारे में सुना है कुछ इलाकों में, जहाँ इनका उपयोग अब लोग अपने स्वार्थ और सुविधा के लिए करते हैं.

    जवाब देंहटाएं
  3. लेख अच्छा है परन्तु ऐसे कानून को यहाँ लागु करने में शंका यही है की कानूनन यदि इस तरह की व्यवस्था की जा सके तो इसके दुरुपयोग होने की संभावनाएं बढ़ जायेंगी...

    जवाब देंहटाएं
  4. अपने मत व्यक्त करने हेतु सभी का आभार !

    जवाब देंहटाएं
  5. bahut si baaten sahmati se pare ki baat hoti hai.. desh me bahut se aise log hain, jo tadap tadap kar marte hian, uska main wajah aarthik karan hota hai par fir ek welfare state me iksha mirtyu dena sambhav bhi nahi...

    जवाब देंहटाएं
  6. कितना मुश्किल हीस विषय पे एक सोच बना पाना ... इंसान जीवन जीते हुए भी अलग अलग आयु में इसे अलग अलग तरह से लेगा ...

    जवाब देंहटाएं

आपकी प्रतिक्रिया निश्चित रूप से प्रेरणा प्रसाद :)