गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

आत्मा में बसे आराध्य को....










मन के भीतर मंदिर शिव का

मैं क्या मंदिर जाऊँगी 



आर्द्र नयन से सींचा प्रतिपल 


मैं क्या जल चढ़ाऊँगी 



वेद विधान की देव - वन्दना 

अज्ञानी मैं हूँ अकिंचना 

मिला न कोई बिल्ब धतूरा

हृदय कलिका चढ़ाऊँगी 



अंध तमस में जीवन सारा 

भस्म करो हे देव मलिनता

श्रद्धा और भक्ति की शक्ति 

रोम रोम में बसाऊँगी 



10 टिप्‍पणियां:

  1. वन्दना जी महाशिवरात्री की बहुत बहुत शुभकामनाएँ , कविता में मनोद्गार की सुन्दर अभिव्यक्तिहुई है। शायद टंकण की त्रुटि से 'आर्द्र 'के स्थान पर 'आद्र ' हो गया है यदि आपको सही लगे तो सुधार लें।

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  2. प्रणाम सर, आपका स्वागत है ! मुझे यही पता था कि आद्र शब्द आर्द्र का समानार्थी है और उच्चारण में थोडा सरल इसलिए इसका प्रयोग किया , किन्तु यदि ऐसा नहीं है तो मैं अवश्य ही इसे बदल दूंगी ! प्लीज़ बताइयेगा जरुर !
    सादर !

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  3. ..... आपकी लेखनी कई बार नि:शब्‍द कर देती है
    बेहद गहन एवं उत्‍कृष्‍ट पोस्‍ट

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  4. वन्दना जी इसमें भी हृ के स्थान पर ह्र है और जाऊंगी के स्थान पर जाऊँगी उचित रहेगा। शब्द आद्र नहीं आर्द्र ही है। क्षमा करें मै इन सूक्ष्म शाब्दिक वर्तनी की ओर ध्यानाकर्षित नहीं करवाना चाहता किंतु क्या करूँ शिक्षक रहा हूँ इस कारण इस बुराई से निजात नहीं मिल रही है। मैं तो कविता के भाव को बारीकी से समझना चाहता हूँ पर ध्यान इन पर ही बरबस चला जाता है मजबूर हूँ। आपकी मंजिल तो लम्बी है इसलिए आपका ध्यान आकर्षित करना अपना कर्त्तव्य समझता हूँ।

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    1. त्रुटियों पर ध्यान दिलाने के हृदय से आभार ओम सर ! अच्छा लगता है जब कोई इतने मनोयोग से हमारी रचना पढता है !
      सादर प्रणाम !

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  5. महा-शिवरात्री की बधाई .. भावपूर्ण और अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति ...
    शिव चरणों में स्तुति ...

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    1. हार्दिक अभिनन्दन आपका ,शिव शंकर की कृपा बनी रहे !

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  6. tumhari ye panktiyan kai bar padhi vandana, kitna saral chitt hokar apni vedna aur prbhu ke prati prem ko shabdon me dhaal diya tumne bahut sundar aise hi likhti raho !
    man ki pavitrata ho to kisi mandir ki aawashakta nahin hoti eeshwar to sarv vyavi hai , meri shubhkamnaaye tumhare liye , aise hi bani rahna !

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आपकी प्रतिक्रिया निश्चित रूप से प्रेरणा प्रसाद :)