शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

स्वतंत्र भारत के स्वतंत्र नागरिक


                                                
तारीख '१५ अगस्त' और बोध होता है,भारतीय शहीदों के बलिदान और देशभक्ति भाव की विजय का, उस अंग्रेजी शासन की बर्बर एवं क्रूर पराधीनता से जिसे देश ने सदियों तक झेला I विदेशी हुकूमत से हासिल आज़ादी की ख़ुशी हालंकि पूरी तरह खुशनुमा नहीं रही.....बंटवारे की राजनीति खेल कर, दी गई आज़ादी, कहीं न कहीं बहुत रक्तपात युक्त और दर्दनाक  भी रही जो गाहे बगाहे प्रशासन समेत आम जन जीवन तक को झकझोर देती है I सन १९४७ से २०१० तक  63 वर्ष की स्वतंत्रता का सही मूल्य वही समझ सकते हैं जिन्होंने वो आतंक झेला जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते I विचारणीय प्रश्न यही है की कितना अपना है हमारा देश ? कितना मान दिया है हमने अपनी स्वतंत्रता को ? क्या है राष्ट्र की अस्मिता , क्या है इसकी संस्कृति,कौन  है इसके प्रेरणा स्रोत और कहाँ से मिलेगी इसको ऊर्जा_इन महत्वपूर्ण प्रश्नों पर भी हमें विचार करना चाहिए I
                   वन्दे-मातरम् कहते हुए अपना जीवन न्योछावर करने वाले शहीदों के सपनो के स्वतंत्र एवं अखंड भारत में अलगाववादी राजनीति , पृथकतावादी आन्दोलनों की सक्रियता आखिर क्यूँ बनी है ? क्यूँ नहीं देश के नागरिकों में अपने राष्ट्र के प्रति सम्मान और प्रेम उत्पन्न हो सका ? कहीं न कहीं कोई कमजोरी तो रही है , यह कमजोरी संवैधानिक स्तर पर है या राजनितिक दर्शन के  स्तर पर या फिर इसका अन्य कोई कारण है यह विचार पिछले  ६३ वर्षों में शायद ही कभी किया हो I समीक्षा करने का प्रयास करें तो स्वाधीनता के बाद से ही राष्ट्र वैचारिक और दार्शनिक उहापोह के द्वन्द से जूझता रहा है I भारतीय संस्कृति और दर्शन के ऊपर 'मेकाले' चिंतन से ओतप्रोत साम्राज्यवादियों द्वारा प्रतिपादित मार्ग से किन आदर्शों एवं मूल्यों को मान्यता दी गई, समझ पाना मुश्किल है और  देश का प्रशासनिक ढांचा तो है ही साम्राज्यवादी वादी सत्ता की देन I
              किन्तु स्वतंत्रता में निहित भाव, जो मुक्ति देता है दासता के भाव से वह कितना अद्वितीय है इसका विचार करना
भी आवश्यक है I
जिन परिस्थितियों में देश को स्वतंत्रता मिली वे आर्थिक, सामाजिक, राजनितिक विकास के स्तर पर अत्यंत पिछड़ी हुई थी I सोने की चिड़िया माने जाने वाला भारत जब स्वतंत्र हुआ तो जीर्ण शीर्ण अवस्था में  था I जनमानस का शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक शोषण अपने चरम पर था I स्वतंत्रता प्राप्ति जो ध्येय रही आजादी के मतवालों की , उनके बलिदान का प्राप्य भारत एकदम खोखला था I  समृद्धि व खुशहाली के लिए  अनेकानेक विकास जनित कार्यक्रम चलाए गए और परिणाम स्वरुप देश अब पिछड़े देशों की श्रेणी से निकल कर विकसित देशों की सूचि में  लगभग पहुँच  चुका है I देश का  संस्कृतिक एवं आध्यात्मिक दर्शन  तो वह सदैव से ही उन्नत अवस्था में रहा है और वह भारतीय  अखंडता का प्रतीक एवं प्रमाण है I  भारत देश विभिन्नता में एकता के भू - सांस्कृतिक अवधारणा की विश्व भर में एक मात्र मिसाल है जिसका सम्मान हमें यहाँ के नागरिक होने के नाते अवश्य करना चाहिए I हमें निश्चित ही गर्व होना चाहिए ऐसे देश के नागरिक होने का जहां से दुनिया को आध्यात्म एवं  विज्ञान का ध्यान और ज्ञान मिला I परन्तु उपहार स्वरुप मिली स्वतंत्रता का महत्व अनदेखा कर नित नए उपहास अपने ही देश के सम्मान का करते है I भूल जाते हैं परिचर्चाओं में नकारात्मक मत देते हुए की शहीदों ने आजाद भारत के हित में जो सपने देखे, उन्हें साकार करना हमारा काम है , हमारा उद्देश्य है I यदि यह भाव हमारा ध्येय रूप लेले तो भारत की अखंडता पर कभी  कोई आंच नहीं आ सकती I
                   अतः हमें पहचाना होगा अपनी स्वतंत्रता को ,राष्ट्र की अस्मिता को , संस्कृति को ,इसके प्रेरणा स्रोत को और सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न इसको मिलने वाली उर्जा को जो निसंदेह हम स्वयं है -स्वतंत्र भारत के स्वतंत्र नागरिक I

                                                                                                                                                       - डॉ. वन्दना सिंह

1 टिप्पणी:

  1. देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत प्रेरणा दायक लेख। हमें हमारी साँस्कृतिक धरोहर से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। हमाारे राष्ट्रीय पर्व भी उसी ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते है।

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