शनिवार, 17 नवंबर 2012

हाइकू....

प्रतिबंधित
अनुबंधित,दर्द
पैमाना है क्या?




बिन परीक्षा  
होना प्रतीक्षारत 
कब सार्थक 





थामा था पल
गुज़रा पल पल
आएगा कल?




कभी सपने
बुने, रंगे, सजाये
क्यों छितराए?




जीवन संग
मन मस्त मलंग
कैसा कलंक ?




दोषहीन था

निर्दोष प्रेम मय
स्वप्न नयन




असहाय सा

देवस्वरूप ऊँचा
प्रेम निठुर !




रौशन चाँद 
 गर्वित  इठलाता 
 क्यूँ मद्धिम है





रात में  देखा 
गूढ़ रहस्यमय
 चाँद उजला 




अब फिर से

आस जागी मन में
भीगे पत्तों की



आतुरता है

किसलय हो जाये
ये तन मन



अर्थमय सा
दिव्य सृजन होता
बरसात का





कच्ची दीवार
और ये पगडण्डी
लो गाँव बसा 




लड़खड़ाते
शब्दों की बैसाखी है
मौन वेदना 




सात्विक प्रेम

स्वस्ति जीवन, और  
मैं संजीवनी

 

 
साधन मात्र
निज समर्पण की
मौन वन्दना...


...वन्दना...

5 टिप्‍पणियां:

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