व्यथा की बेड़ियों में
जकडा मौन...
आश्चर्यजनक रूप से
चोटिल होते होते
स्फटिक सम टूट तो गया..
पर....
बंदी जख्मों में...
जो चिंगारी लगी
उस अंगार से सुलगती
धुंआ - धुंआ होती
गहरी सुकोमल आद्रता
आहूत होती ज़िन्दगी
प्राणों से ऊष्मा को धुआं कर गयी...
और इस 'मन' ने इसमें भी...
खोज लिए काव्य सौन्दर्य... के
नए आयाम !
उलहाना दूँ... या वारी जाऊं...?
....वन्दना...
व्यथा शायद स्त्री के व्यक्तित्त्व का हिस्सा बन गया. अब समय आ गया है इन व्यथाओं की परिधि से बाहर निकलने का. बहुत खूबसूरत मार्मिक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग को ज्वाइन भी कर रही हूँ. धन्यबाद.
व्यथाओं का या दर्द का अंत होगा ??
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 18 दिसम्बर 2021 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी रचना
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