मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

यूं ही नहीं प्रेम शाश्वत है






तादात्मय सम्बन्ध 
जरुरी... 
दो पंखों के मध्य 
प्रेम की 
उड़ान के लिए !

और उतनी ही जरुरी 
स्वतंत्रता... 
गहरी जड़ों में 
बिना खोये 
अपनी  श्रद्धा और निष्ठा !
 
जैसे बूँद बूँद 
में है सक्षमता...
सागर  सृजन की 
और धरती में उपज की 

प्रेम में भी 
श्वास लेने की क्षमता 
ओसकण सी अनुभूति 
क्षण क्षण 
रखती है तरोताजा 

प्रेम में है प्रतिपल 
पुनरावृत्ति सी  
मरण 
और पुनर्जीवन की
  



तभी शायद प्रेम अजर है, अमर है 
यूं ही नहीं प्रेम शाश्वत है !





गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

सुनो !





सुनो !
अब तो बरसात भी नहीं रही ,
फिर ,
ये आँखों में सीला पन 
कैसे रह गया 


सुनो !
अब तो रात भी गुज़र गुई 
फिर,
ये आँखों में इंतज़ार 
कैसे रह गया


सुनो !
अब तो बहते बहते समंदर हो गए ,
फिर, 
लबों पर तिश्नगी 
कैसे रह गयी 


सुनो !
अब तो हर्फ़ भी ख़त्म हो चले 
फिर,
भी ये ख़त अधुरा 
कैसे रह गया 

...वन्दना...

मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

कुछ बोल जुबाँ से निकले....







कुछ बोल जुबाँ से निकले  
कुछ निगाहे जुबाँ से पिघले...

रिश्ते नाते तमगे बन गए 
उम्मीदों के भी दम निकले 

इक तान सुन के मैं बह गई 
वो सुर में सुर मिला के बदले




मतलूब बदले तो बेशक बदले
बाखुदा तलब कभी न बदले

इब्तेदा में ही मर गए सब
इन्तेहा-ऐ-इश्क कौन बदले

जन्नत की तमन्ना में तिजारत
तमन्ना-ऐ-जन्नत में सजदे निकले

इबादत भी बुजदिलाना खिदमत
जहीनो ने भूखों के निवाले निगले



मतलूब = जिन्हें पाने ख़्वाहिश हो 
तिजारत = व्यापार