शुक्रवार, 22 जुलाई 2011



मतलूब बदले तो बदले...
बाखुदा तलब कभी न बदले...

इब्तेदा में ही मर गए सब...
इन्तेहा-ऐ-इश्क कौन बदले...

जन्नत की तमन्ना में तिजारत...
तमन्ना-ऐ-जन्नत में सजदे निकले...

इबादत भी बुजदिलाना खिदमत...
जहीनो ने भूखों के निवाले निगले...

.....वन्दना...

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