गुरुवार, 26 अप्रैल 2012



इच्छाओं और अग्नि के मध्य 
जो सम्बन्ध है,
वही तो पापों का अनुबंध है...
हमारा अंतर कहीं न कहीं /
कभी न कभी
पुण्य प्राप्ति चाहता है 
तभी तो वह कभी किसी 
'पत्थर' को पूज लेने में भी 
नहीं हिचकिचाता है ;
हम कितनी जटिलता 
से जकड़े हैं , इन 
सही और गलत शब्दों के बीच में...
चुन चुन कर प्रेम चुनते हैं..
सावधानी पूर्वक निर्णय करते हैं 
और...
अक्सर ही सीधी , सरल राह चुनते हैं 
चलने के लिए , कि 
मंजिल तक पहुँच जाएँ 
पर हो सकता है,
इससे भी ज्यादा ...
और भी ज्यादा 
हम उसी 'मध्य' में 
फंसते जाते हैं
क्योंकि ,
बहुत कुछ करने की इच्छाएं दबाकर 
अग्नि से खेलते हैं...

....वन्दना...


3 टिप्‍पणियां:

  1. इच्छाओं से लड़ का जीतना ......बहुत मुश्किल हैं

    जवाब देंहटाएं
  2. Its a nature of society that we r guided by to do acceptable!

    जवाब देंहटाएं
  3. इच्छाओं और अग्नि के मध्य
    जो सम्बन्ध है
    वही तो पापों का अनुबंध है

    कितना सटीक ... कितना सारगर्भित ..
    दोनों के बीच का द्वन्द ...कहीं कुछ स्वाभाविक नहीं रहने देता ..जिससे व्यक्तित्व में विसंगतियां पैदा होती हैं और अनायास ही सब कुछ असहज होता जाता है ...

    जवाब देंहटाएं

आपकी प्रतिक्रिया निश्चित रूप से प्रेरणा प्रसाद :)