मंगलवार, 25 दिसंबर 2012

उज्जीवन !

साक्षात उज्जीवन !!!

प्राण प्रकृति चलित...
कथित गत्वर "लौ"
सहसा पुनः प्रज्वलित...

तृष्णा प्रजित
उपजे रोष
एकीभूत
मानवीय ओष 

शून्य न हो चैतन्य
इच्छा शक्ति ,
प्राण शक्ति
धन्य धन्य !!!

अस्तु...

साक्षात उज्जीवन !!!

शनिवार, 22 दिसंबर 2012

आत्म वंचना....






व्यथा की बेड़ियों में 
जकडा मौन...
आश्चर्यजनक रूप से 
चोटिल होते होते 
स्फटिक सम टूट तो गया.. 
पर.... 
बंदी जख्मों में... 
जो चिंगारी लगी 
उस अंगार से सुलगती  
धुंआ - धुंआ  होती 
गहरी सुकोमल  आद्रता 
आहूत होती ज़िन्दगी 
प्राणों से ऊष्मा को धुआं कर गयी...  
और इस 'मन' ने इसमें भी... 
खोज लिए काव्य सौन्दर्य... के 
नए आयाम !
उलहाना दूँ... या वारी जाऊं...?

....वन्दना...

शनिवार, 17 नवंबर 2012

हाइकू....

प्रतिबंधित
अनुबंधित,दर्द
पैमाना है क्या?




बिन परीक्षा  
होना प्रतीक्षारत 
कब सार्थक 





थामा था पल
गुज़रा पल पल
आएगा कल?




कभी सपने
बुने, रंगे, सजाये
क्यों छितराए?




जीवन संग
मन मस्त मलंग
कैसा कलंक ?




दोषहीन था

निर्दोष प्रेम मय
स्वप्न नयन




असहाय सा

देवस्वरूप ऊँचा
प्रेम निठुर !




रौशन चाँद 
 गर्वित  इठलाता 
 क्यूँ मद्धिम है





रात में  देखा 
गूढ़ रहस्यमय
 चाँद उजला 




अब फिर से

आस जागी मन में
भीगे पत्तों की



आतुरता है

किसलय हो जाये
ये तन मन



अर्थमय सा
दिव्य सृजन होता
बरसात का





कच्ची दीवार
और ये पगडण्डी
लो गाँव बसा 




लड़खड़ाते
शब्दों की बैसाखी है
मौन वेदना 




सात्विक प्रेम

स्वस्ति जीवन, और  
मैं संजीवनी

 

 
साधन मात्र
निज समर्पण की
मौन वन्दना...


...वन्दना...

शनिवार, 29 सितंबर 2012

जला कर मुहब्बत सजा कर गया





नजर से नजर को बचा कर गया 

वो जाने  का हुनर दिखा कर गया

सब्र-ए-मुसलसल की हद कर गया 
अहले जर्फ़ ए इश्क अदा कर गया

  मेरी पलकों पे आंसू सजा कर गया   

मुहब्बत के तोहफे अता कर गया

जब भी मिला मुस्कुरा कर मिला 
जब गया तो मेरी जान लेकर गया

मंदिर की जलती लौ सा वो दिया
जला कर मुहब्बत सजा कर गया

...वन्दना...  
 

गुरुवार, 20 सितंबर 2012





बस साथ मेरे साया
मेरा साथ देने आया.

नाउम्मीदी-ए-विसाल
बला का मलाल लाया

भीगी हुई इस शब् में
सैलाब-ए-अश्क आया

उसकी चाहत में मैंने
रंज-ओ-गम बेहिसाब पाया

रास्ते के हर पत्थर को
मैंने अपना खुदा बनाया

जुनूं-ए-वफ़ा,तर्क-ए-मुहब्बत
हमने भी ये धोखा खाया

आंखे नम हो गयी ये तब-तब
करार दिल ने जब-जब पाया

उसका भी अब क्या कोई होगा
अपनों ने जिसे किया पराया

...वन्दना...

सोमवार, 27 अगस्त 2012

हाइकु

१.
 
अर्थमय सा
दिव्य सृजन होता
बरसात का...

२.

 कच्ची दीवार
और ये पगडंडी
लो गाँव बसा 

३.


बुधवार, 25 जुलाई 2012

 
जीवन 'हास' - 'परिहास' नहीं है

'माया' में 'भ्रमित ज्ञान' का भास नहीं है.


हो सहज , सरल और सुन्दर जीवन

'मानव' को इसका अभ्यास नहीं है


'खेल'- 'विधि' और 'विधाता' रचित

यहाँ कौन 'काल' का 'दास' नहीं है????

...वन्दना....

सोमवार, 16 जुलाई 2012



एक भरोसा है ; तो बद गुमानी भी
इस दुनिया के बहुत से
दिल, टूटते - बिखरते - चूर चूर देखकर...
न जाने क्यूँ सच लगता है-
कि, दोस्ती प्यार और रिश्ते
सिर्फ टूटकर ही ख़त्म होते हैं
दोस्ती भी जरूरत के आधार पर...
प्यार दुनिया की सहमती के
और..
और रिश्ते...?
खुदगर्जी और धोखों का
एक अच्छा सा नाम ही मात्र ...

दोस्ती प्यार और रिश्ते-
सिर्फ टूटकर ही ख़त्म नहीं होते
कभी - कभी 
यूँ ही हौले से....
अपने आप - दिलों में ही ख़त्म हो जाते हैं ,
अब डर टूटने से नहीं लगता
खुद ही ख़त्म होने से लगता है
टूटने और तोड़ने के बाद भी
ह्रदय में स्पंदन सा बाकी सा बचा रह जाता है
एक पीड़ा ह्रदय में बस जाती है
एक स्मृति ह्रदय पर छाई रहती है...
पर...
पर यूँ ही ..हौले से अपने आप ही
दिलों में ख़त्म हो जाने के बाद
शेष तो कुछ बचता ही नहीं -
मात्र स्पंदन भी नहीं
तनिक क्षोभ भी नहीं.

...वन्दना...

शुक्रवार, 29 जून 2012



इबारत दर्द की लेकर इक आस सजाये हैं
चाहत के दरीचे मे पैबंद सजाये हैं

बस जर्फ के दम पे खामोश हूँ अब तक
अहबाब तो दास्तान ए महफिल सजाये हैं 

तस्कीन हो हासिल उस तन्हा दिल को यारब
चश्म ए नम छुपा कर ये लब मुस्कुराए हैं

बड़ी शिद्दत से रातो को जाग जाग कर
उस चाँद के पहलू मे सितारे सजाये हैं

...वन्दना...

बुधवार, 6 जून 2012

तिश्नगी से जो इज्तिराब है,
जायका.ऐ.अश्क लाजवाब है!!!


इक यादे अय्यामे गुजिश्ता के मतलूब,
कमबख्त तलब से तबाह जोशे ख्वाब है...
.....वन्दना.....

शनिवार, 26 मई 2012



दंड दिधि का विधान
कभी मर्यादा महान
कभी कर्म ही प्राण
सहन शक्ति प्रमाण
आत्म व्यथा पुनर्निर्माण
संस्कार आहूत  आह्वान 
निज तन मन धन बलिदान
संस्कारों का सत्  प्रधान
....वन्दना ...

शुक्रवार, 18 मई 2012




 
 
 
तेरे ख़ुलूस में जियूं और मर जाऊं
हर हाल बहरहाल तुझे ही पाऊं

विसाले ख्वाब की जुस्तजू में
हर शब् ही आँखों के ग़म उठाऊँ

कभी यूं भी हो के खयाले आज़ादी...
कैद-ऐ-हयात से मिलेगी भूल जाऊं..
...वन्दना....

मंगलवार, 1 मई 2012




क्षण-क्षण...
हंस -हंस...
तिल -तिल...
जल कर...
जीवन वैभव.....ज्वाला...

...वन्दना...

गुरुवार, 26 अप्रैल 2012



इच्छाओं और अग्नि के मध्य 
जो सम्बन्ध है,
वही तो पापों का अनुबंध है...
हमारा अंतर कहीं न कहीं /
कभी न कभी
पुण्य प्राप्ति चाहता है 
तभी तो वह कभी किसी 
'पत्थर' को पूज लेने में भी 
नहीं हिचकिचाता है ;
हम कितनी जटिलता 
से जकड़े हैं , इन 
सही और गलत शब्दों के बीच में...
चुन चुन कर प्रेम चुनते हैं..
सावधानी पूर्वक निर्णय करते हैं 
और...
अक्सर ही सीधी , सरल राह चुनते हैं 
चलने के लिए , कि 
मंजिल तक पहुँच जाएँ 
पर हो सकता है,
इससे भी ज्यादा ...
और भी ज्यादा 
हम उसी 'मध्य' में 
फंसते जाते हैं
क्योंकि ,
बहुत कुछ करने की इच्छाएं दबाकर 
अग्नि से खेलते हैं...

....वन्दना...





इस पृथ्वी पर 
निसंदेह , सब कुछ 
व्यर्थ है  -
निस्सार है
इंसान - कितनी मेहनत करता है
'कुछ ' पाने के लिए 
परन्तु इस धरती पर 
आखिर उसे क्या मिलता है ?
बहुत कुछ पाकर भी ,
मात्र संतोष भी नहीं मिल पाता
चाहा,अनचाहा 
सब होने के बावजूद 
कमी 'कुछ' की रह ही जाती  है 
और यूँ ही...
एक पीढ़ी गुजरती है 
दूसरी आ जाती  है 

पर  ये धरती 
सदा ऐसे ही रहती है 
वक्त ऐसे ही चलता रहता है 
इस पर बसने वाले 
और जीने वाले 
इंसान का / उसकी उदासी का 
उस पर फरक नही पड़ता
वो थी ,
और शायद 
चिरकालीन है .

सूरज अपनी  निश्चित जगह से
उगता है 
और सुनिश्चित जगह जाकर 
छिप जाता है ,
सभी नदियाँ ...
सागर में मिलती हैं,पर
सागर कभी भरता नहीं 
फिर भी नदियाँ...
अपने उद्-गम  स्थल से 
बहती रहती हैं ,रूकती नहीं ...
कहीं भी पडाव नहीं...

इंसान भी जन्म लेता है
और मर जाता है
सच, सब बातें थकाने वाली हैं 

आँखें देखकर भी तृप्त नहीं होती 
कान...सुन कर भी संतुष्ट नहीं होते,
मनुष्य...
 इनका वर्णन भी नही कर सकता...
जो हो चुका है घटित 
वही  पुनः होगा 
और होता रहेगा...

सूरज ,नदियाँ,इंसान...
सब अवश- विवश 
इस धरती पर,
आसमां के नीचे 
कुछ भी नया नहीं है 
कुछ भी ऐसा नहीं है 
जिसे देख कर कोई कहे...
'देखो वह बात नयी है'
नहीं!!!
सब हो चुका है
अतीत  में सब सुरक्षित है 
और उसकी स्मृति 
वर्तमान में भी शेष नहीं रह पाती 
और ना हमारे पश्चात 
आने वालों को याद रहेगा 
उनका अतीत ...
इसलिए ..
सब व्यर्थ है..
सब निस्सार है...
इस पृथ्वी पर...

....वन्दना...

शनिवार, 21 अप्रैल 2012

इश्क



ग़ुलामी इश्क में मन्नत....
तबाही इश्क में जन्नत..
खुदी का दम भरना..
मुहब्बत में न करना...
...वन्दना..

गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

गज़ल...



आरजू-ए-शफक तो है मगर आसमां से नहीं,
तलाश-ए-गुल भी है मगर गुलिस्ताँ से नही

मुद्दत से आँखों में समाये हुए हैं दरिया,
उमड़ता ही सैलाब-ए-अश्क पर मिशगाँ से नही

मस्लेहतों  ने छीन लिया जो कुछ भी था हासिल,
इस वक्त से मैं पस्त हूँ मगर इम्तेहां से नही

राहबर ही लूटते हैं इस जहान में ,
लगता है कारवां से डर बयाबाँ से नही
...वन्दना...

शुक्रवार, 16 मार्च 2012

ग़ज़ल....



मुकम्मिल न हो सका अबस मेरा ख्वाब था ।
महताब आसमाँ का मेरा इन्तिख्वाब था  ।।

बे.कायदा भी बनती फकत यूँ न बन सकी ।
मेरी हर खता पे रहमत उसका जवाब था ।।

बढ़ चली थी इस कदर खुदगर्जियाँ इंसान  की ।
रिश्तों का एहतराम निभाना अजाब था ।।   

एहतियातन कर लिया उससे किनारा मैंने ।
दिलशाद बिछड़ कर मुझसे मेरा अहबाब था ।।

बगावत का हर ख्याल बखूबी भुला दिया ।
निभाना इश्क में वफ़ा का कारे सराब था ।।

रिवाज़ों की गिरफ्फत से मुसल्लत थी इस कदर ।
कि सर पे मेरे संगदिली का खिताब था ।।

...वन्दना...




सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

सप्तपदी



मैं अपना पता जानती नहीं...
धरा से विमुख...
आसमां में भी जगह नहीं...

*********************

तुम किसी रंग में रंग गए...
खुशबु बन घुल मिल गए...
मैं...
सुखन में भी ढली नहीं...

**********************

एक दिन तुम भी बदलोगे...
वक़्त किसी पर मेहरबां नहीं...
तुम्हारे ही कदम डगमगाए हैं...
सप्तपदी मैंने छली नहीं...

...वन्दना...

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

राह और आदमी....



वो एक अकेली राह पर जाता आदमी;
अपने मन में छुपाये....
अनगिनत तूफ़ान...
मन के भीतर ही दबाये.
जीवन का उफान
कि; अभी तक वह 
संघर्षरत है ,
अपने जीवन के सुखों के लिए...
कदाचित इसीलिए निकल पड़ा है 
इस राह पर....
तलाशने कुछ नया सा...
किन्तु भागते - दौड़ते...
वह प्रारम्भिक उत्साह 
कहीं दब सा गया है,
उस तूफानी चाल में शिथिलता कैसी?
मन के अवसाद में कडुवाहट क्यों?
कदाचित , राह में ठोकर लग गयी है,
और... मन के संघर्ष 
राहों कि ठोकर खा - खा कर
बोझिल हो चले हैं,
और फिर....
वो एक अकेली राह पर लौटता आदमी ;
अपने मन में छुपाये....
अनगिनत विषाद...
जीवन का अवसाद....

...वन्दना...


रविवार, 5 फ़रवरी 2012

स्वप्न...


स्वप्न होंगे सत्य सारे.
 ह्रदय में यह ध्येय निष्ठा...
 जलती ज्वाला का कण-कण,
 दे मन को नव प्राण प्रतिष्ठा...
....वन्दना....
दिल के रिश्ते हैं नाजुकी का क्या कहना...
नर्मो नाजुक ख्याल भी रुला देते हैं...वन्दना...

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

बुधवार, 25 जनवरी 2012



इश्क...इकबाल
हद-ऐ-इन्तेज़ार-ओ-अजाब..
हर हद से गुजर कर...
अजीम हों जाओ...

...वन्दना...








मंगलवार, 24 जनवरी 2012

यादें....

यादों की बेनजीर नजीरें.... उफ़ और आह !!!! 
कभी सबब गम का तो कभी दे गम से पनाह....
....वन्दना....

रे मन !

रे मन !

 अभागे...


 कितना...


 दौड़े... भागे...


 अपेक्षाओं


 को लादे...


 दम भर न


 दम साधे...


 कितना...


 दौड़े... भागे...


 रे मन !....


 अभागे...


 ...वन्दना...

शनिवार, 7 जनवरी 2012

 
आप सबको  वर्ष 2012 
की कोटिश: बधाई!
विनाश भाव त्याग कर करें सभी सृजन...
शुभागमन नव वर्ष हार्दिक शुभागमन...वन्दना...


प्रतीक्षारत... अनवरत
अपेक्षाकृत...जागृत
निश्चयता, स्थिरता
सर्वथा मानवीय... चिराकाँक्षा ....
- आशा, सुख से जीने की आशा.....
...वन्दना...