मानो -
अवसाद में घुलती जाती ख़ुशी....
और पिघलती जाती जैसे मोमबत्ती ...
आहा !!! ....ज़िन्दगी !!!
हर हाल बस जलती घुलती जाती...
कभी थरथराती कभी भरभराती
आहा !!! ...ज़िन्दगी !!!
ख्वाब और ख्वाहिशों के दरमियाँ
अधूरी मौत का जश्न मनाती
आहा !!! ... ज़िन्दगी !!!
गर्जनाओं और वर्जनाओं में
विवश हो बधिर और मूक होती
आहा !!! ... ज़िन्दगी !!!
समंदर के किनारे कुछ टूटते तारे
और पानी में भीगे पंख फड़फडाती
आहा !!! ... ज़िन्दगी !!!
...वन्दना ...
अवसाद में घुलती जाती ख़ुशी....
और पिघलती जाती जैसे मोमबत्ती ...
आहा !!! ....ज़िन्दगी !!!
हर हाल बस जलती घुलती जाती...
कभी थरथराती कभी भरभराती
आहा !!! ...ज़िन्दगी !!!
ख्वाब और ख्वाहिशों के दरमियाँ
अधूरी मौत का जश्न मनाती
आहा !!! ... ज़िन्दगी !!!
गर्जनाओं और वर्जनाओं में
विवश हो बधिर और मूक होती
आहा !!! ... ज़िन्दगी !!!
समंदर के किनारे कुछ टूटते तारे
और पानी में भीगे पंख फड़फडाती
आहा !!! ... ज़िन्दगी !!!
...वन्दना ...
जिंदगी के विभिन्न आयामों पर भावपूर्ण विचार विमर्श.
जवाब देंहटाएंअभिनन्दन.
बहुत सुंदर और विचार प्रधान रचना...
जवाब देंहटाएंbeautiful and thought full composition...
जवाब देंहटाएंएक जोड़ी अनुभूति और उसका द्वन्द .कभी भरी झोली कभी हाथ खली ...यही है आहा जिंदगी ....
जवाब देंहटाएंएक जोड़ी अनुभूति और उसका द्वन्द .कभी भरी झोली कभी हाथ खाली ...यही है आहा जिंदगी ....
जवाब देंहटाएंख़्वाब और ख़्वाहिशों के दरमियां
अधूरी मौत का जश्न मनाती ज़िंदगी ...
आह... !
मार्मिक भाव !
कोमल भावनाओं से भरी रचना के लिए आभार
आदरणीया डॉ.वंदना सिंह जी !
अच्छा लगा आपके ख़ूबसूरत ब्लॉग पर आ’कर
आपको सपरिवार होली की बहुत बहुत बधाई !
हार्दिक शुभकामनाओं मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंश्री राजेंद्र स्वर्णकार जी... रचना दीक्षित जी , ऋतु श्रीवास्तव...
जवाब देंहटाएंऔर दी... आपकी सराहना निश्चित रूप से प्रेरणप्रसाद है... आपका सभी का हार्दिक आभार...
जिन्दगी की सच्चाई मात्र चन्द मोतियों में पिरो दि आपने
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बलॉग