कुछ बोल जुबाँ से निकले
कुछ निगाहे जुबाँ से पिघले...
रिश्ते नाते तमगे बन गए
उम्मीदों के भी दम निकले
इक तान सुन के मैं बह गई
वो सुर में सुर मिला के बदले
मतलूब बदले तो बेशक बदले
बाखुदा तलब कभी न बदले
इब्तेदा में ही मर गए सब
इन्तेहा-ऐ-इश्क कौन बदले
जन्नत की तमन्ना में तिजारत
तमन्ना-ऐ-जन्नत में सजदे निकले
इबादत भी बुजदिलाना खिदमत
जहीनो ने भूखों के निवाले निगले
मतलूब = जिन्हें पाने ख़्वाहिश हो
तिजारत = व्यापार
Bahut Achi Kavita Hain..........
जवाब देंहटाएंbehtreen aur kitne sare pahluon ko samete hui rachna hai bahut khoob didi :)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पंक्तियाँ ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर , शुभकामनाये
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