"शब्द संवेदन" संवेदन शील मन से निकलने वाले शब्द जो स्वरुप ले लेते हैं कविता का, ग़ज़ल का,नज़्म का... लेखनी के सहारे,अभिव्यक्ति का आधार हमारे शब्द संवेदन इंसानी जीवन की अहम् जरूरत हैं. और अभिव्यक्ति वाकई जीवन को हल्का,सहज और सरल बना देती है.बेशक महज़ आत्मसंतुष्टि के लिए नहीं बल्कि जिंदगी के अनुभव भी ,चाहे खट्टे हो या फिर मीठे,संवेदनाओं को शब्दों में पिरोने और अभिव्यक्त करने के साथ ही हमारे सोच विचारों के झंझावातों में फंसे दिल और दिमाग को शांत कर देते हैं. "शब्द संवेदन" पर आप सभी का स्वागत है.
गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014
बुधवार, 19 फ़रवरी 2014
सांझ ढले.....
सांझ ढले जब पंछी चहके , दहका सूरज भी कुम्हलाया
विस्मृति की खिड़की से गुपचुप ,यादों का बादल घिर आया
पाषाण हृदय के कारा में , हो तृषित जरा जो मन घबराया
मूक अभागी तृष्णा पथराई , रेतीला दरिया बह आया
स्वप्न शेष पर निंदिया रूठी ,कोरों में खारा जल आया
न चेहरा दिखता न हीं सपन , दरपन दरपन भी धुन्धलाया
बुधवार, 5 फ़रवरी 2014
अहले नज़र यूँ रब को बना लो
अहले नज़र यूँ रब को बना लो
गमगीं दिल के ग़म अपना लो
चश्म ए पुरनम छलकी जाए
तश्ना लब थे प्यास बुझा लो
जब अहसास भी सर्द लगें तो
एक सुलगता ख्वाब जला लो
दुनिया के रंजो गम बेज़ा
हँसते गाते फुरसत पालो
ज़ुल्मो दहशत फैलाने वालों
बेहतर इश्क का शिकवा गिला लो
आँखों की बरसात थमे तो
दीप 'दुआ' का एक जला लो
अहले नज़र = कद्रदान
चश्म ऐ पुरनम = आसुंओ से भरी हुई आँखें
तश्ना लब = होठों की प्यास
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