बुधवार, 5 फ़रवरी 2014

अहले नज़र यूँ रब को बना लो



अहले नज़र यूँ रब को बना लो 
गमगीं दिल के ग़म अपना लो 

चश्म ए पुरनम छलकी जाए 
तश्ना लब थे प्यास बुझा लो 

जब अहसास भी सर्द लगें तो 
एक सुलगता ख्वाब जला लो 

दुनिया के रंजो गम बेज़ा 
हँसते गाते फुरसत पालो

ज़ुल्मो दहशत फैलाने वालों    
बेहतर इश्क का शिकवा गिला लो 

आँखों की बरसात थमे तो    
दीप 'दुआ' का एक  जला लो





अहले नज़र  = कद्रदान 
चश्म ऐ पुरनम  = आसुंओ से भरी हुई आँखें 
तश्ना लब = होठों की प्यास  

4 टिप्‍पणियां:

  1. वंदना .......
    वाह..... ..क्या लिखा हैं तुमने ........
    ......क्या कहूं लिखने को शब्द ही नहीं हैं मेरे पास .......अन्तर्मन् की आवाज़ हैं जो शब्दों मैं बयान नहीं की जा सकती.......
    प्रभु तुम पर यह रहमत बनाये रखे ........आनंदित हृदय .......पवन ........

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  2. हँसते गाते जिंदगी जीने का अच्छा फार्मूला !
    अच्छी ग़ज़ल !

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आपकी प्रतिक्रिया निश्चित रूप से प्रेरणा प्रसाद :)