"शब्द संवेदन" संवेदन शील मन से निकलने वाले शब्द जो स्वरुप ले लेते हैं कविता का, ग़ज़ल का,नज़्म का... लेखनी के सहारे,अभिव्यक्ति का आधार हमारे शब्द संवेदन इंसानी जीवन की अहम् जरूरत हैं. और अभिव्यक्ति वाकई जीवन को हल्का,सहज और सरल बना देती है.बेशक महज़ आत्मसंतुष्टि के लिए नहीं बल्कि जिंदगी के अनुभव भी ,चाहे खट्टे हो या फिर मीठे,संवेदनाओं को शब्दों में पिरोने और अभिव्यक्त करने के साथ ही हमारे सोच विचारों के झंझावातों में फंसे दिल और दिमाग को शांत कर देते हैं. "शब्द संवेदन" पर आप सभी का स्वागत है.
गुरुवार, 24 नवंबर 2011
रविवार, 20 नवंबर 2011
सम्हल रे मन सम्हल.....
सम्हल रे मन सम्हल.....
निज स्वार्थ का तम हर..
बन दृढ से तू दृढतर...
मान आस्था का कर...
बलवान धर्म कर...
सम्हल रे.....
बदल पतित मन...
मनोवृत्ति भी बदल...
निर्धन को देदे धन...
हो शान्ति का वतन...
सम्हल रे मन.....
छु ले धवल शिखर...
कर बंजर भू उर्वर...
जननी को धन्य कर...
गा वन्दना के स्वर....
सम्हल रे मन सम्हल...
निज स्वार्थ का तम हर..
बन दृढ से तू दृढतर...
मान आस्था का कर...
बलवान धर्म कर...
सम्हल रे.....
बदल पतित मन...
मनोवृत्ति भी बदल...
निर्धन को देदे धन...
हो शान्ति का वतन...
सम्हल रे मन.....
छु ले धवल शिखर...
कर बंजर भू उर्वर...
जननी को धन्य कर...
गा वन्दना के स्वर....
सम्हल रे मन सम्हल...
...वन्दना....
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