"शब्द संवेदन" संवेदन शील मन से निकलने वाले शब्द जो स्वरुप ले लेते हैं कविता का, ग़ज़ल का,नज़्म का... लेखनी के सहारे,अभिव्यक्ति का आधार हमारे शब्द संवेदन इंसानी जीवन की अहम् जरूरत हैं. और अभिव्यक्ति वाकई जीवन को हल्का,सहज और सरल बना देती है.बेशक महज़ आत्मसंतुष्टि के लिए नहीं बल्कि जिंदगी के अनुभव भी ,चाहे खट्टे हो या फिर मीठे,संवेदनाओं को शब्दों में पिरोने और अभिव्यक्त करने के साथ ही हमारे सोच विचारों के झंझावातों में फंसे दिल और दिमाग को शांत कर देते हैं. "शब्द संवेदन" पर आप सभी का स्वागत है.
गुरुवार, 28 जुलाई 2011
शुक्रवार, 22 जुलाई 2011
माँ....
मेरे उर में जागी है
इक व्यथा...
माँ, तुम जैसी
ही है मेरी
भी कथा......
माँ.....
तुमने सब दिया...
जन्म...
और सुख के सभी
आधार....
पर पुत्री को क्यूँ
न दिया सेवा
का अधिकार......
माँ.....
तुमने ही सिखाया प्रतिपल...
जल जल ...
दिव्य जीवन....
और उससे
साक्षात्कार....
माँ ......
तुम महा सिन्धु....
मैं तो मात्र एक
बिंदु....
पाया तुमसे ही आकार....
पंचतत्व आधार,
पर देह तो तुम्ही से
पायी माँ.....
समर्पित तुम्हे....
मेरे शब्दों की संवेदना.....
उऋण न हो सकेगी,
कभी....माँ....
तुम्हारी वन्दना.....
....वन्दना ....
निंदा और आवेश...
निंदा और आवेश भरे स्वर....
हो जाते हैं जब मुखर....
कैसे जगाएंगे समुदाय....
और कैसे दूर करें,
.......अन्याय.....
परिपक्व हो यदि विचार...
फिर रौशन होगा जग संसार...
फिर रौशन होगा जग संसार...
हो जाते हैं जब मुखर....
कैसे जगाएंगे समुदाय....
और कैसे दूर करें,
.......अन्याय.....
परिपक्व हो यदि विचार...
फिर रौशन होगा जग संसार...
फिर रौशन होगा जग संसार...
...वन्दना....
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