गुरुवार, 28 जुलाई 2011

उफ़ वो आँखे...






उफ़ वो आँखें रोती -रोती
यूँ  ही जीवन खोती-खोती



                  उन आँखों से उन गालो पर
                  बन कर बहते मोती -मोती 




अपने  घर में वो इक लड़की
डरती है क्यूँ सोती -सोती


                
                   उमर भर रोती रही वो
                  अब हंसी तो रोती-रोती




होती नहीं नुमायाँ  चाहत  
हों जायेगी होती -होती



     ......वन्दना.....

4 टिप्‍पणियां:

  1. लडकी की चाहत… सतत आहत … जान ही जाएगी… दुखों को ढोती ढोती……… वन्दना आपने बहुत ही मार्मिक कथा लिख दी… अन्ना…।

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  2. Kuch nahi ho sakta iss desh ka... Ye sab hota aaya hai aur hota rahega.
    Ab to pathar ho gayi hain vo aakhen bhi jo kabhi khushiyan aur gum ke ashkon ko chalkati thi.

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आपकी प्रतिक्रिया निश्चित रूप से प्रेरणा प्रसाद :)