पता नहीं कितने बरसों से ...
कोई नहीं जानता कब से ...
मेरा ह्रदय और ,
ह्रदय की अभिलाषाएं
मेरी कालातीत संवेदनाएं
मेरे मस्तिष्क की सोचो के
भ्रमजाल में फंसी रहीं
कोई नवीनता नहीं
वही दिन ... वही रातें
कभी गर्म ... कभी सर्द
यादों का सिलसिला ....
पीछे छूटा हुआ पल-पल
समय समय पर
आज में जुड़ना चाहता रहा
उनकी तस्वीर बनाता रहा
पर ,
रंग पूरे नहीं हुए कभी
कई रंग ... अतीत में खो गए
कुछ फीके पड़ गए
तस्वीर आज भी अधूरी है
कभी यादों का सिलसिला
इस मन को मजबूर कर देता है
समय समय पर
पीछे छुटे हुए पलों को
आज में जोड़ कर
उनकी तस्वीर बनाने के लिए
पर ...
उस तस्वीर में भरने के लिए
रंगों की कमी ... मुझे
कभी बहुत पीछे धकेल देती है
तो कभी रंगों की तलाश में
मैं ...
समय से आगे जाने की कोशिश कर बैठती हूँ
पर ... पीछे छूटे हुये कुछ पल
बहुत गहरे में छुपे हुए हैं
जो आगे तक दुबारा भी नहीं नज़र आते
मैं ... उन्हें पाना चाहती हूँ
अँधेरे से उजाले में लाना चाहती हूँ
पर कैसे… ?
रहस्य की गर्त में छुपे पल
बीते पल !
लौट कर नहीं आते
और फिर बेशक कितने ही
नए पल हासिल हो जाएँ
वो तस्वीर तो
अधूरी ही रहेगी ...
फीकी फीकी ...
उन रंगों के अभाव में
जो सच में रहस्य के गर्त में समा गए हैं !