बदगुमानी में जिया तो जी भी लिया..
शौक-ऐ-यकीं के शरारों से जला जिया...
तल्खी-ऐ-जीस्त से बिगड़ा मिजाज़े आशिकी...
अक्स-ऐ-गम-ऐ-यार ने ग़मगीन किया...
मेरे मशगले कभी न किसी को रास आ सके
मैंने हर ताल्लुक बात से नहीं जज़्बात से जिया
पुर्सिश ऐ मुहब्बत में परस्तिश के एहतराम
अहद-ए-वफ़ा भी ख्वाहिशों में नहीं 'दुआ' में जिया
....वन्दना....
शब्द अर्थ
बदगुमानी = बुरी शंकाएं या मान्यताएं , शौक-ऐ-यकीं= भरोसा करने का शौक शरारों = चिन्गारीयों
तल्खी-ऐ-जीस्त=ज़िन्दगी के कडवी हकीकतें
मिजाज़े आशिकी =प्रेम पूर्ण स्वभाव
अक्स-ऐ-गम-ऐ-यार=प्रियजनों के जीवन की मुश्किलों की छाया , ग़मगीन = दुखी
मशगले=तौर तरीके /पुर्सिश= हालचाल लेना / परस्तिश=पूजा / एहतराम =सम्मान
वाह बहुत खूब
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