सोमवार, 13 अक्तूबर 2014

रात की बाती.... डूब गयी !





टिमटिमाते 
डबडबाते
साँझ की बाती 
डूब गयी


फिर गहन 

अमावस 

अंधियारे

मन के गहरे 

गलियारे


जलते सपनों का 

दीप जला

इक मन पिघला 

कुछ रीत चला


धीमे धीमे 

सन्नाटे में 

कोई भेद खुला 

और दूर 

मुँडेरी पर बैठी 

इक याद हंसी


रीते मन में 

इक हूक उठी 

इक टीस उठी

इक पत्ता टूटा 

उस टहनी से 

फिर एक नया 

सपना सा गिरा


और टूटे कांच की

किरचों  से 

सपनों का

आशा दीप जला 

किरणों का 

रौशन जाल बुना



कुछ पल सरके 

कुछ मन दरके 

तारों का जाल 

भी टूट गया 


सपने जलाये

धीमे धीमे 

फिर रात भी 

थक कर 

डूब गई



जलते सपनो 

के दीये में 

रात की बाती 

डूब गयी 

4 टिप्‍पणियां:

  1. Diyu.... aapne ek andheri raat ko kitne rang de die... dil ko chu gai apki post !
    charan sparsh !

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर शब्द चयन और गंभीर भावाभिव्यक्ति सांझ ढलने से अमावस की रात में सपनो के दीपक जलने और रात्रि समाप्त होने के साथ सपनों के दीए में रात की बाती का विलीन हो जाना सुन्दर कल्पना |

    जवाब देंहटाएं
  3. Tumhare shabdon aur bhavo mein ek gahri lay hai vandana... unki taartamyata man moh leti hai srijan ki jo kshamta tum mein hai uski main mureed hun ! Yun hi likhti raho bas tum

    जवाब देंहटाएं

आपकी प्रतिक्रिया निश्चित रूप से प्रेरणा प्रसाद :)