शनिवार, 23 मई 2015

व्यक्तित्व !!!

व्यक्तित्व में उपजती 
विशेषतायें 
कुछ घोषित 
कुछ आरोपित 

व्यवहार में झलकती 
सतही  
अपर्याप्त 
कृत्रिमता 
और उनका 
यदा कदा संघात बनना 

परिस्थितियां 
देती हैं प्रताड़ना 
लांछन 
कष्ट 
व पीड़ा 

अभाव पनपते हैं 
खरपतवार से...  
अंदरुनी भावात्मक 
 बाहरी विस्तृत  

शांत भाव 
वहन  करने का 
निष्क्रिय कर देता है 
ओज अधिकारों का 

पम्परागत संयम 
सहानुभूति और करुणा 
के साथ 
असंभव हो उठती है 
सहनशीलता 
सहज शालीनता 

अपरिचित उदासीन  भाव
 जन्म लेते हैं  
प्रकृति के 
सृष्टि  के 
और 
व्यक्तित्व के !!!

4 टिप्‍पणियां:

  1. अतिसुन्दर ..... भावों को सजगता की साथ साक्षात करते हुए अनुभूत करना ही जीवन हे पर ध्यान रहे साक्षात करते हुए खुद को खुद ही की भावों से निर्लिप्त भी रखा जा सकता हे।
    सदा दिन दुगनी रास्ते चौगनी आप तरक्की करी।

    सादर प्रणाम डिफि _/\_

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  2. शब्द शब्द तहे खोलता … परत दर परत विश्लेषण करता ....
    अब इसे एकालाप कहूँ या आत्मसाक्षात्कार … या तठस्थ रह कर क्षणिक उदासीनता में लिपटा पीड़ा का प्रागट्य कहूँ या स्वयं से अनभिज्ञ होना …
    कभी कदास ऐसी सोच अवश्यम्भावी है वंदना … पर स्थायी भाव नहीं हैये मानोगी ना
    जो भी है ... पूर्ण है ....बिल्कुल तुम्हारी तरह सधा …नपा तुला

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  3. बहुत ही सरल शब्दों में आपने व्यक्ितत्व की परिभाषा कर दी। बधाई।
    ............
    लज़ीज़ खाना: जी ललचाए, रहा न जाए!!

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आपकी प्रतिक्रिया निश्चित रूप से प्रेरणा प्रसाद :)