शनिवार, 21 अप्रैल 2012

इश्क



ग़ुलामी इश्क में मन्नत....
तबाही इश्क में जन्नत..
खुदी का दम भरना..
मुहब्बत में न करना...
...वन्दना..

4 टिप्‍पणियां:

  1. bahut hi umda...ishq kee uchaiyaan....khudi me kabhi nhi milti khud ko khokar hi milti hai...:)

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  2. आरजु पुरी हो आपकी यही करता हुँ मन्नत
    जिते जीही मिले आपको इश्कका जन्नत
    दुर रेहेकर कभी ना पडे आहे भरना
    आपके खातिर खुदासे करता हुँ यही वन्दना

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  3. khud par jami tahein hathein tabhi is kism ke ruhani ishq ko socha ja sakta aur tum ise shabdon mein baandh paaye uske liye ...peeth plz

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आपकी प्रतिक्रिया निश्चित रूप से प्रेरणा प्रसाद :)