शुक्रवार, 18 मई 2012




 
 
 
तेरे ख़ुलूस में जियूं और मर जाऊं
हर हाल बहरहाल तुझे ही पाऊं

विसाले ख्वाब की जुस्तजू में
हर शब् ही आँखों के ग़म उठाऊँ

कभी यूं भी हो के खयाले आज़ादी...
कैद-ऐ-हयात से मिलेगी भूल जाऊं..
...वन्दना....

5 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ...लाजबाब शेर ..



    एक शेर अख्तर शीरानी जी का

    में बेवफा सही ,मुझे दादे-वफ़ा न दे !
    मेरी खता को अपने करम से सिला न दे ||

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  2. बहुत खूब ........
    ग़ालिब ने भी क्या खूब फ़रमाया .....
    कैदे हयात ओ रंजो गम असल में दोनों एक है
    मौत से पहले जिन्दगी गम से निजत पाए क्यों

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूब ........
    ग़ालिब ने भी क्या खूब फ़रमाया .....
    कैदे हयात ओ रंजो गम असल में दोनों एक है
    मौत से पहले जिन्दगी गम से निजत पाए क्यों

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  4. बहुत खूब ........
    ग़ालिब ने भी क्या खूब फ़रमाया .....
    कैदे हयात ओ रंजो गम असल में दोनों एक है
    मौत से पहले जिन्दगी गम से निजत पाए क्यों

    जवाब देंहटाएं
  5. विसाले ख्वाब की जुस्तजू में
    हर शब् ही आँखों के ग़म उठाऊँ

    waah!!! kya khoob kaha hai...

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आपकी प्रतिक्रिया निश्चित रूप से प्रेरणा प्रसाद :)