शुक्रवार, 24 मई 2013

मेरा वजूद दर्दे-ताब






न खार  न गुलाब 
मेरा वजूद दर्दे-ताब

फिर वही शामे मलाल
फिर खुली दिल की किताब

जो बढ़ने लगी तश्नगी
पाया लुत्फ ए चश्मे आब

चश्म ऐ पुरनम से देखो 
टपकने लगे रेज़ा ख्वाब 

जब की सुकूँ की तलाश 
दिया आईने ने जवाब

जो रूह मे बोये थे कभी    
सुखन मे ढूंढ़े वो ख्वाब 

9 टिप्‍पणियां:

  1. उर्दू के शब्दो की ज्यादा जानकारी नहीं...फिर भी
    इतने प्यारे शब्दो का शब्द संयोजन
    जो बढ्ने लगी तश्नगी
    पाया लुत्फ़े चश्मे आब .......:)
    हर पंक्तियों से भाव निकाल कर आ रहे ....

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  2. आपकी यह रचना कल शनिवार (25 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  3. बहुत खूब लिखा आपने | पढ़कर आनंद आया | आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ है | जल्द ही और रचनाएँ पढने की कोशिश करूँगा | ब्लॉग का अनुसरण कर रहा हूँ आप भी आमंत्रित हैं मेरे ब्लॉग का अनुसरण करने हेतु यदि आपको मेरी रचनाएँ पसंद आयें तो | आभार

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  4. खोने में पाने का हुनर हो ...दर्द में 'बहाने' का हुनर हो ... तो जिंदगी कितनी आसन हो

    मुझे ज्यादा समझ नहीं ...पर पढ़ के तर हुई नम हुई ...भाव भाषा की इस सम्र्रिद्धि को ढेर सा प्यार और उससे ज्यादा आशीष ....बहती रहो लिखती रहो…

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  5. बहन कहूं या बेटी कुछ समझ मैं नहीं आया पर इतना अवश्य समझा हूँ की आपकी भोगी हुई पीड़ा ही कविता या ग़जल के रूप में प्रस्फुटित होती है क्योंकि भोगे हुए यथार्थ का वर्णन बहुत सुंदर होता है तभी तो कालिदास के विरह काव्य बहुत सुन्दर बन पड़े हैं |

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  6. छोटी बहर में ग़ज़ल लिखना शायरी का कमाले फ़न है,बहुत अच्छे।

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  7. छोटी बहर में ग़ज़ल लिखना शायरी का कमाले फ़न है,बहुत अच्छे।

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आपकी प्रतिक्रिया निश्चित रूप से प्रेरणा प्रसाद :)