रविवार, 20 नवंबर 2011

सम्हल रे मन सम्हल.....

सम्हल रे मन सम्हल.....

निज स्वार्थ का तम हर..
बन दृढ से तू दृढतर...
मान आस्था का कर...
बलवान धर्म कर...
सम्हल रे.....


बदल पतित मन...
मनोवृत्ति भी बदल...
निर्धन को देदे धन...
हो शान्ति का वतन...
सम्हल रे मन.....


छु ले धवल शिखर...
कर बंजर भू उर्वर...
जननी को धन्य कर...
गा वन्दना के स्वर....
सम्हल रे मन सम्हल...
...वन्दना....

1 टिप्पणी:

  1. badal patit mann....
    nij swaarth ka tam har....
    samhal re mann samhal...
    ..............aatmchintan adbhut...vaichaarik kshamta sreshth...path sadaiv aalokit ho.....aasheesh..anna di...

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आपकी प्रतिक्रिया निश्चित रूप से प्रेरणा प्रसाद :)