रविवार, 20 नवंबर 2011

स्वप्न....

स्वप्न और आस...
मन में द्रवित अहसास....
टूटे तो वेदना का मौन..
अनगनित तरल उच्छ्वास...
...वन्दना...

6 टिप्‍पणियां:




  1. मन में द्रवित एहसास …
    … … …
    आदरणीया डॉ.वंदना सिंह जी
    सस्नेहाभिवादन !

    सुंदर रचनाएं हैं आपके ब्लॉग पर कविताएं भी ,
    ग़ज़ल भी ! आलेख भी


    बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  2. bahot hi marmsparshi kavitayen likhi hai vandana ji aapne.... aapko shubhkamnayen!!!!!

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आपकी प्रतिक्रिया निश्चित रूप से प्रेरणा प्रसाद :)