मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

यूं ही नहीं प्रेम शाश्वत है






तादात्मय सम्बन्ध 
जरुरी... 
दो पंखों के मध्य 
प्रेम की 
उड़ान के लिए !

और उतनी ही जरुरी 
स्वतंत्रता... 
गहरी जड़ों में 
बिना खोये 
अपनी  श्रद्धा और निष्ठा !
 
जैसे बूँद बूँद 
में है सक्षमता...
सागर  सृजन की 
और धरती में उपज की 

प्रेम में भी 
श्वास लेने की क्षमता 
ओसकण सी अनुभूति 
क्षण क्षण 
रखती है तरोताजा 

प्रेम में है प्रतिपल 
पुनरावृत्ति सी  
मरण 
और पुनर्जीवन की
  



तभी शायद प्रेम अजर है, अमर है 
यूं ही नहीं प्रेम शाश्वत है !





4 टिप्‍पणियां:


  1. प्रेम शाश्वत है, अजर है, अमर है,
    प्रेम ही सब कुछ है............प्रेम में ही दुनिया निहित है॥
    पर इसको बनाए रखने के लिए, ……………?
    सबसे अहम शर्त: एक ऐसी स्वतन्त्रता जिसमे विश्वास हो, श्रद्धा हो, निष्ठा हो...
    तभी प्रेम में प्रेम है । बेहतरीन रचना, दिल को छूती हुई !

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  2. ईश्वर के प्रति प्रेम को उजागर करती हुई रचना

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  3. प्रेम को परिभाषित करती सुन्दर भावमयी रचना!

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  4. prem ke aise swaroop ko samjhna hi prem hoga !
    beautiful expressions !!

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आपकी प्रतिक्रिया निश्चित रूप से प्रेरणा प्रसाद :)